योगिनी #एकादशी व्रत कथा ! संपूर्ण फल प्राप्ति हेतु कथा श्रवण अवश्य करें ?

योगिनी #एकादशी व्रत कथा ! संपूर्ण फल प्राप्ति हेतु कथा श्रवण अवश्य करें ?

योगिनी #एकादशी व्रत कथा ! संपूर्ण फल प्राप्ति हेतु कथा श्रवण अवश्य करें ? एकादशी तिथि प्रारंभ पारण समय कब है 👇    • योगिनी एकादशी कब है ? 21 जून या 22 जून वृं...   ==============••••••============= Management Directer :- Twinkle Bhardwaj sheopur(m.p.) 7869641304 ~~~~~~~~~~~~~~~~•••••~~~~~~~~~~~~~ Follow on Social media Follow on Instagram 👇 https://www.instagram.com/daily_gyan_... Follow on Youtube 👇    / @gyan8554   Follow on Facebook 👇 https://www.facebook.com/twinkal.bhar... Management Directer :- Aacharya Ramesh sheopur(m.p.) 7869641304 🔱HARHAR🙌MAHADEV🔱 योगिनी एकादशी संपूर्ण कथा लिरिक्स 👇 योगिनी एकादशी का व्रत आषाढ़ मास के कृष्‍ण पक्ष की 11वीं तिथि को रखा जाता है और यह तिथि आज है। योगिनी एकादशी का व्रत करने से आपके कई जन्‍मों के पापों का अंत होता है और आपको परम पुण्‍य की प्राप्ति होती है। एकादशी के व्रत को करने वाले लोगों के लिए पूजापाठ करने के साथ ही व्रत कथा का पाठ या श्रवण करना अनिवार्य माना जाता है। इसको करने के बाद ही आपको योगिनी एकादशी के व्रत का संपूर्ण फल प्राप्‍त होता है। और इस कारण से ही हम आप सभी सनातन प्रेमियों के लिए के लिए ,लेकर आए हैं योगिनी एकादशी की दिव्य कथा ।जिसे आप कहीं भी कभी भी बड़ी आसानी से श्रवण करके अपने व्रत का पूर्ण फल प्राप्त कर सके। तो चलिए कथा से पूर्व सर्वप्रथम नारायण (विष्णु भगवान) को नमस्कार करके, मनुष्यों में श्रेष्ठ नर (अर्जुन) को नमस्कार करके, देवी सरस्वती और व्यास को नमस्कार करके, कथा का प्रारंभ करना चाहिए।"  नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।। युधिष्ठिर ने पूछा वासुदेव ! आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की जो एकादशी है उसका नाम क्या है? कृपया उसका वर्णन कीजिये। भगवान् श्रीकृष्ण बोले नृपश्रेष्ठ! आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम 'योगिनी' है। संसार सागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए यह सनातन नौका के समान है। तीनों लोकों में यह सारभूत व्रत है। अलकापुरी में राजाधिराज कुबेर रहते हैं। वे सदा भगवान शिव की भक्ति में तत्पर रहने वाले हैं। उनका हेममाली नाम वाला एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए फूल लाया करता था। हेममाली की पत्नी बड़ी सुंदरी थी। उसका नाम विशालाक्षी था। वह यक्ष कामपाश में आबद्ध होकर सदा अपनी पत्नी में आसक्त रहता था। एक दिन की बात है, हेममाली मानसरोवर से फूल लाकर अपने घर में ही ठहर गया और पली के प्रेम का रसास्वादन करने लगा, अतः कुबेर के भवन में न जा सका। इधर कुबेर मंदिर में बैठकर शिवजी का पूजन कर रहे थे। उन्होंने दोपहर तक फूल आने की प्रतीक्षा की। जब पूजा का समय व्यतीत हो गया तो यक्षराज ने कुपित होकर सेवकों से पूछा- 'यक्षो! दुरात्मा हेममाली क्यों नहीं आ रहा है, इस बात का पता तो लगाओ।' यक्ष ने कहा- राजन् ! वह तो पत्नी की कामना में आसक्त हो अपनी इच्छा के अनुसार घर में ही रमण कर रहा है। कुबेर ने तुरंत ही अपने सेवकों को भेजकर उस हेममाली को अपने समक्ष बुलवाया। हेममाली भय से आकुल होकर तुरंत ही कुबेर महाराज के सामने उपस्थित हो गया। उसे देखकर कुबेर की आंखें क्रोध से लाल हो गयीं। वे बोले-'ओ पापी। ओ दुष्ट! ओ दुराचारी! तूने भगवान की अवहेलना की है, अतः कोढ़ से युक्त और अपनी उस प्रियतमा से वियुक्त होकर इस स्थान से भ्रष्ट होकर अन्यत्र चला जा।' कुबेर के ऐसा कहने पर वह उस स्थान से नीचे गिर गया। उस समय उसके हृदय में महान् दुःख हो रहा था। कोढ़ से सारा शरीर पीड़ित था। परन्तु शिव पूजा के प्रभाव से उसकी स्मरण-शक्ति लुप्त नहीं हुई। तदनन्तर इधर-उधर घूमता हुआ वह पर्वतों में श्रेष्ठ मेरु गिरि के शिखर पर गया। वहां उसे तपस्या के पुंज मुनिवर मार्कण्डेयजी का दर्शन हुआ। पाप कर्मा यक्ष ने दूर से ही मुनि के चरणों में प्रणाम किया। मुनिवर मार्कण्डेय ने उसे भय से कांपते देख परोपकार की इच्छा से निकट बुलाकर कहा-' 'तुझे कोढ़ के रोग ने कैसे दबा लिया? तू क्यों इतना अधिक निन्दनीय जान पड़ता है? यक्ष बोला- मैं महाराज कुबेर का अनुचर हूं। प्रतिदिन भगवान शिवजी की पूजा के लिए मानसरोवर से कमल पुष्प लाकर कुबेर के भवन में पहुंचाना मेरा कर्म था। लेकिन एक दिन पत्नी के साथ रमण करते हुए मुझे समय का ज्ञान न रहा और पुष्प ले जाने में विलंब हो गया। इससे कुबेर महाराज ने क्रोधित होकर श्राप दे दिया और मैं कोढ से पीड़ित, पत्नी के वियोग से दुखी होकर दर-दर भटक रहा हूं। आज किसी पुण्य कर्म से मैं आज आपके समक्ष उपस्थित हुआ हूं। ऋषियों का स्वभाव दयालु और परोपकार वाला होता है। सो हे महात्मन् आप ही मुझ अभागे को कर्तव्य का बोध कराते हुए पाप से मुक्ति का कोई उपाय बताएं। मार्कण्डेयजी ने कहा—तुमने यह सच्ची बात कही है, असत्य भाषण नहीं किया है; इसलिये मैं तुम्हें कल्याणप्रद व्रत का उपदेश करता हूँ। तुम आषाढ़ के कृष्णपक्ष की 'योगिनी' एकादशी का व्रत करो। इस व्रत के पुण्य से तुम्हारी कोढ़ निश्चय ही दूर हो जायगी। भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं—ऋषि के ऐसे वचन सुनकर हेममाली दण्ड की भांति मुनि के चरणों में पड़ गया। मुनि ने उसे उठाया, इससे उसको बड़ा हर्ष हुआ। मार्कण्डेयजी के उपदेश से उसने एकादशी का व्रत किया, जिससे उसके शरीर की कोढ़ दूर हो गयी। मुनि के कथनानुसार उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान करने पर वह हेममाली पूर्ण सुखी हो गया। नृपश्रेष्ठ! यह योगिनी का व्रत ऐसा ही बताया गया है। जो अट्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराता है #एकादशी #योगिनीएकादशीव्रतकथा #yoganiekadashi #एकादशीमहात्म्य #gyan #