उस्ता कला: बीकानेर की सुनहरी विरासत          #history #rajasthaniculture #rajasthan

उस्ता कला: बीकानेर की सुनहरी विरासत #history #rajasthaniculture #rajasthan

उस्ता कला: बीकानेर की सुनहरी विरासत 'उस्ता कला' (Usta Kala) राजस्थान के बीकानेर शहर की एक विश्व प्रसिद्ध और अत्यंत विशिष्ट पारंपरिक कला शैली है। यह कला मुख्य रूप से ऊंट की खाल पर की जाने वाली बारीक सुनहरी नक्काशी (गोल्डन एम्बॉसिंग) और चित्रकारी के लिए जानी जाती है। अपनी सुंदरता, बारीकी और सोने के उपयोग के कारण इसे 'मुनाव्वती' (Munawwati) काम भी कहा जाता है। उस्ता कला के बारे में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है: 1. इतिहास और उत्पत्ति मूल: उस्ता कला का उद्गम स्थल ईरान (फारस) माना जाता है। यह कला मुगल काल के दौरान भारत आई। बीकानेर आगमन: 16वीं शताब्दी के अंत में, बीकानेर के महाराजा राय सिंह, जो मुगल दरबार में एक सेनापति थे, कुछ कुशल कलाकारों को अपने साथ बीकानेर लाए। इन कलाकारों के समुदाय को 'उस्ता' कहा जाता है (फ़ारसी में 'उस्ताद' का अर्थ है गुरु या माहिर)। इन्हीं उस्ता कलाकारों द्वारा विकसित और संरक्षित कला को 'उस्ता कला' नाम दिया गया। संरक्षण: बीकानेर के शाही परिवारों ने इस कला को सदियों तक संरक्षण दिया, जिससे यह कला वहां फली-फूली। 2. तकनीक और प्रक्रिया उस्ता कला एक बेहद जटिल और धैर्य की मांग करने वाली प्रक्रिया है, जिसे पूरा होने में कई महीने लग सकते हैं। इसके प्रमुख चरण इस प्रकार हैं: सतह तैयार करना (Preparation): पारंपरिक रूप से, मृत ऊंट की खाल को साफ करके, संसाधित करके और मिट्टी के सांचों पर ढालकर विशेष बर्तन बनाए जाते थे, जिन्हें 'कुप्पी' कहा जाता है। आजकल, यह काम लकड़ी, कांच, संगमरमर और दीवारों पर भी किया जाता है। अस्तर (Priming): सतह को चिकना करने के लिए एक विशेष प्रकार का पेस्ट (अस्तर) लगाया जाता है। नक्काशी (Embossing): यह सबसे महत्वपूर्ण चरण है। मिट्टी के पाउडर, गोंद, गुड़ और अन्य सामग्रियों को मिलाकर एक पेस्ट बनाया जाता है। कलाकार इस पेस्ट का उपयोग ब्रश या कलम से सतह पर उभरी हुई (3D) डिजाइन बनाने के लिए करते हैं। रंग भरना (Painting): नक्काशी सूखने के बाद, उसमें जीवंत प्राकृतिक रंग भरे जाते हैं। पारंपरिक रूप से वनस्पति रंगों का उपयोग होता था। सोने का काम (Gilding): अंतिम चरण में, उभरी हुई नक्काशी पर 24 कैरेट शुद्ध सोने के पतले वर्क (Gold leaf) को बहुत सावधानी से लगाया जाता है। यही वह चरण है जो उस्ता कला को उसकी शाही चमक देता है। 3. मुख्य विशेषताएँ शुद्ध सोने का उपयोग: इसकी सबसे बड़ी पहचान असली सोने का उपयोग है, जो कभी काला नहीं पड़ता और सैकड़ों वर्षों तक चमकता रहता है। सूक्ष्मता: इसमें की गई नक्काशी और चित्रकारी अत्यंत बारीक और विस्तृत होती है। विषय-वस्तु: डिजाइनों में अक्सर पुष्प पैटर्न, ज्यामितीय आकृतियां, मुगल शैली के चित्र और धार्मिक विषय शामिल होते हैं। टिकाऊपन: उस्ता कला के नमूने बहुत टिकाऊ होते हैं और पीढ़ियों तक चलते हैं। 4. कहाँ देखने को मिलती है? जूनागढ़ किला, बीकानेर: किले का 'अनूप महल' उस्ता कला का एक अद्भुत उदाहरण है, जहाँ दीवारों और छतों पर सोने का शानदार काम किया गया है। भांडाशाह जैन मंदिर: इस मंदिर में भी उस्ता कला का बेहतरीन काम देखने को मिलता है। रामपुरिया हवेलियाँ: बीकानेर की इन हवेलियों में भी इस कला के दर्शन होते हैं। 5. प्रसिद्ध कलाकार उस्ता कला को जीवित रखने में कई कलाकारों का योगदान रहा है। सबसे प्रमुख नाम स्वर्गीय हिसामुद्दीन उस्ता का है, जिन्हें इस कला में उनके योगदान के लिए 1986 में भारत सरकार द्वारा 'पद्म श्री' से सम्मानित किया गया था। 6. वर्तमान स्थिति आजकल, ऊंट की खाल की उपलब्धता कम होने और लागत बढ़ने के कारण, कलाकार लकड़ी, कैनवास और अन्य माध्यमों पर अधिक काम कर रहे हैं। यह एक महंगी और समय लेने वाली कला है, इसलिए यह चुनौतियों का सामना कर रही है। हालाँकि, सरकार और बीकानेर के 'कैमल हाइड ट्रेनिंग सेंटर' जैसे संस्थान इस अनूठी विरासत को बचाने और नई पीढ़ी को प्रशिक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। #history #historyfacts #saharadesert #climatechange #geography #dance #greensahara #africanhumidperiod #ghoomar #rajsthan #rajasthaniculture